पढ़िए कथा महर्षि व्यास गंगा ने कलियुग को सर्वश्रेष्ठ युग क्यों कहा

ऐप पर पढ़ें

एक बार ऋषि-मुनियों की एक सभा में इस बात पर चर्चा हुई कि कौन-सा युग श्रेष्ठ है। कोई ‘सतयुग’, कोई ‘त्रेता’ तो कोई ‘द्वापर’ इसे श्रेष्ठ कह रहा था। मजलिस किसी युग की श्रेष्ठता की बात नहीं थी। अंत में समस्या के समाधान के लिए महर्षि विद्याओं में जाने का निश्चय किया।

जब सभी ऋषि दूर पहुँचे, उस समय महर्षि व्यास गंगा में स्नान कर रहे थे। सभी उनका इंतजार कर रहे हैं। उसने पानी में डुबकी लगाई और जब वह ऊपर आया, तो जापानी लागू, ‘कैलिओग सबसे अच्छा है।’ ऋषियों ने समझाया कि व्यास ने फिर से गोता लगाया और जब वे ऊपर आए, तो उन्होंने कहा, ‘शूद्र एक संत हैं, शूद्र एक संत हैं।’ सभी संत विस्मय से एक दूसरे की ओर देखने लगे। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, व्यास जी ने तीसरी बार गंगा में डुबकी लगाई और जब वे ऊपर आए तो ‘नारी धन्य है’ का जाप करने लगे। मुनिगण महर्षि व्यास की इस साधना में कुछ आश्चर्य की बात है। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे किस मंत्र का जाप कर रहे हैं?

घुस्ल कर्ण व्यास अपने कोटे में आए और प्रतीक्षा में बैठे सभी संतों का स्वागत किया, ‘कहो, तुम सब आज यहाँ कैसे आए?’ शायियों ने कहा, ‘वह एक समस्या को हल करने के लिए आपके पास आएगा। लेकिन आप नहाते समय जिन मंत्रों का जाप कर रहे हैं, वह हमें झकझोर कर रख देता है। कृपया पहले पदों को हल करें।’ व्यास जी ने कहा, ‘इसमें गोपनीय कुछ भी नहीं है। जो फल सतयुग में दस वर्ष के कठिन जप-तप से प्राप्त होता है, वही फल त्रेता में एक वर्ष, द्वापर में एक मास और कलियुग में केवल भगवान के नाम के जप से ही प्राप्त होता है, कलियुग श्रेष्ठ है। ब्राह्मण को दीर्घ कठिन तपस्या और पूजा-पाठ से जो फल प्राप्त होता है, वही पुण्य फल कलियुग में शूद्र को सेवा से प्राप्त होता है, इसीलिए शूद्र साधु होता है। यदि आप दयालुता के साथ अपनी सेवा करते हैं, तो आप अपने परिवार के लिए एक अनूठी महिला की भूमिका निभाएंगी। वेती अकेले ही पुण्य अर्जित करती हैं, इसलिए वे धन्य हैं।

अब आप यहां कैसे आ गए? सभी ने कहा, ‘हम किसी को आपके पास आने के लिए कहेंगे, आपके करपा के कारण वह चला जाएगा।’ इससे शंकर व्यास जी मुस्कुरा उठे।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *